शारदीय नवरात्र का शुभारंभ
आज से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है, जिसे पूरे देश में बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। यह नौ दिनों का पर्व माँ दुर्गा और उनकी नौ शक्तियों की उपासना का समय माना जाता है। श्रद्धालु इस दिन घटस्थापना या कलश स्थापना कर माता रानी का आह्वान करते हैं और पूरे नवरात्रि में व्रत, पूजा और भजन-कीर्तन करते हैं।
पहले दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं और पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद मिट्टी से वेदी बनाकर उस पर जौ बोए जाते हैं। तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर, उस पर नारियल और आम के पत्ते रखकर देवी मां का आह्वान किया जाता है। यही घटस्थापना नवरात्रि की मुख्य शुरुआत मानी जाती है।
माँ दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक और धूप जलाकर पूजन किया जाता है। श्रद्धालु लाल चुनरी, सिंदूर, अक्षत, रोली और फूल अर्पित करते हैं। दिनभर उपवास रखकर भक्त मां को जल और नैवेद्य चढ़ाते हैं। इस दिन विशेष रूप से माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जो शक्ति और धैर्य की प्रतीक मानी जाती हैं।
पहले दिन मां शैलपुत्री को घी का भोग लगाना शुभ माना गया है। मान्यता है कि इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है और जीवन में ऊर्जा बनी रहती है। श्रद्धालु पूरे नवरात्रि में अलग-अलग दिनों पर विभिन्न प्रकार के नैवेद्य और प्रसाद अर्पित करते हैं।नवरात्रि के पहले दिन देवी को विशेष रूप से गेंदे का फूल चढ़ाना शुभ माना जाता है। पीले और नारंगी रंग के फूल माँ को अत्यंत प्रिय हैं और यह ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतीक भी माने जाते हैं। पूजा में इन फूलों का उपयोग करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
शारदीय नवरात्र केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि और भक्ति का पर्व भी है। नौ दिनों तक भक्त अपनी आस्था और श्रद्धा के साथ माँ दुर्गा की उपासना कर शक्ति, समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं। पहले दिन से लेकर नवमी तक हर दिन का अपना अलग महत्व है, जो इस पर्व को और भी पावन और अद्वितीय बनाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन इसलिए होती है क्योंकि वे नवरात्रि की नौ दिन की देवी शक्तियों की पहली अवतार मानी जाती हैं।
शैलपुत्री का अर्थ है “पर्वत की पुत्री”। वे देवी पार्वती का पहला रूप हैं और इन्हें सत्य, शक्ति और धैर्य का प्रतीक माना जाता है। नवरात्रि की शुरुआत इस रूप से करने का मतलब है कि भक्त अपनी भक्ति और शक्ति की यात्रा की नींव मजबूत करें।भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और मां शैलपुत्री की ध्यान मुद्रा में आराधना करते हैं। ऐसा करने से मन की शुद्धि, आत्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री पीले और लाल रंग की वेशभूषा में देवी की शांत और सुदृढ़ छवि प्रस्तुत करती हैं। वे सिंहासन पर बैठी, कमल और त्रिशूल लिए दिखती हैं, जो जीवन में स्थिरता, साहस और धर्म के पालन का प्रतीक है।नवरात्रि की नौ देवी शक्तियों में शैलपुत्री पहली शक्ति हैं, इसलिए उनका पूजन पहले दिन किया जाता है। उनके पूजन से भक्तों को सकारात्मक ऊर्जा, संयम और मन की शुद्धि प्राप्त होती है, जो आगे के आठ दिनों के लिए मार्गदर्शक होती है।मां शैलपुत्री की पूजा यह संदेश देती है कि जीवन में धैर्य, साहस और आध्यात्मिक शक्ति आवश्यक है। पहले दिन उनकी आराधना करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक संतुलन की प्राप्ति होती है।