बरेली हिंसा विवाद हाल ही में उस समय चर्चा में आया जब “आई लव मुहम्मद” लिखी टी-शर्ट को लेकर दो समुदायों के बीच तनाव फैल गया। शहर के कुछ इलाकों में मामूली कहासुनी ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। पत्थरबाजी, नारेबाजी और आगजनी जैसी घटनाओं ने माहौल को बिगाड़ दिया। पुलिस को हालात काबू में लाने के लिए भारी संख्या में बल तैनात करना पड़ा और पूरे इलाके में धारा 144 लागू कर दी गई। प्रशासन ने सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।
घटना के बाद बरेली प्रशासन ने हालात को नियंत्रित रखने के लिए कई एहतियाती कदम उठाए। पुलिस और प्रशासन लगातार लोगों से शांति बनाए रखने की अपील करते रहे। इसके साथ ही ड्रोन कैमरों से निगरानी की गई और संदिग्ध लोगों पर नजर रखी गई। हालांकि, हिंसा के बाद स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल बना रहा और व्यापारिक गतिविधियाँ कुछ समय के लिए ठप हो गईं।
इसी बीच, समाजवादी पार्टी के सांसद ने बरेली जाने की घोषणा की ताकि स्थिति का जायजा लिया जा सके और प्रभावित लोगों से मुलाकात की जा सके। लेकिन प्रशासन ने उन्हें शहर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी। अधिकारियों का कहना था कि सांसद की मौजूदगी से स्थिति और बिगड़ सकती है, इसलिए यह निर्णय शांति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से लिया गया।
समाजवादी पार्टी ने इस फैसले पर नाराज़गी जताई और आरोप लगाया कि सरकार विपक्ष की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रही है। पार्टी नेताओं ने कहा कि सांसद केवल शांति अपील करने और पीड़ित परिवारों से मिलने जा रहे थे, लेकिन सरकार उन्हें रोककर यह साबित कर रही है कि वह सच सामने नहीं आने देना चाहती। इस मुद्दे पर राजनीतिक माहौल भी गरम हो गया।
कुल मिलाकर, बरेली हिंसा विवाद एक सांप्रदायिक तनाव की घटना के रूप में सामने आया जिसने प्रशासन, राजनीति और समाज तीनों को झकझोर दिया। सरकार शांति बनाए रखने में जुटी रही, वहीं विपक्ष ने इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर रोक बताया। यह घटना न सिर्फ बरेली बल्कि पूरे प्रदेश के लिए एक चेतावनी बनकर आई कि सांप्रदायिक सद्भाव और शांति बनाए रखना आज भी एक बड़ी चुनौती है।