इतिहास में कुछ झूठ ऐसे होते हैं जो समाज को झकझोर देते हैं, और कुछ अफवाहें ऐसी होती हैं जो क्रांति का बीज बो देती हैं। बिहार की राजधानी पटना में 1974 में एक ऐसी ही घटना घटी, जब यह अफवाह फैली कि लालू प्रसाद यादव की गोली लगने से मौत हो गई है। उस समय लालू यादव पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। यह अफवाह न सिर्फ छात्रों को सड़कों पर ले आई, बल्कि पूरे बिहार को आंदोलित कर गई और यही आग आगे चलकर ‘संपूर्ण क्रांति’ का आधार बनी।
साल 1974 के मार्च महीने की बात है। पटना की सड़कों पर हजारों छात्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। विधानसभा और राजभवन के घेराव का ऐलान हो चुका था। इसी बीच, अचानक पटना यूनिवर्सिटी कैंपस में यह खबर फैल गई कि छात्र नेता लालू यादव को गोली लग गई है और उनकी मौत हो गई है। यह खबर जंगल की आग की तरह फैली
यह अफवाह फैलाई गई थी एक टेलीफोन कॉल के जरिए, जिसमें एक युवक ने अपनी आवाज़ बदलकर नौजवानों को फोन कर यह जानकारी दी। खबर सुनते ही छात्र उग्र हो उठे। हॉस्टलों से निकलकर हजारों छात्र सड़कों पर आ गए। जगह-जगह तोड़फोड़, आगजनी, और पुलिस के साथ टकराव शुरू हो गया। पटना की सड़कों पर लाठियाँ बरसीं, गोलियाँ चलीं, और कई छात्रों की जान चली गई। स्थिति जब पूरी तरह बेकाबू हो गई, तब लालू यादव के साथी छात्र नेता नीतीश कुमार और दो अन्य साथियों ने निर्णय लिया कि अब किसी बड़े और अनुभवी नेता की ज़रूरत है। वे तत्कालीन समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) के पास पहुँचे और उनसे इस आंदोलन की कमान संभालने की अपील की।
जेपी ने छात्रों की भावनाओं को समझा और आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हो गए। यही वह क्षण था, जब यह छात्र आंदोलन एक स्थानीय प्रदर्शन से निकलकर एक राष्ट्रीय आंदोलन बन गया, जिसे आगे चलकर ‘संपूर्ण क्रांति’ कहा गया। यह आंदोलन आगे चलकर इंदिरा गांधी की सरकार के पतन की वजह बना।
इस ऐतिहासिक घटना की नींव 1973 में रखी गई थी, जब पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में कांग्रेस विरोधी छात्र संगठनों ने गठबंधन बनाकर मैदान में उतरने का फैसला किया। प्रेसिडेंट पद के लिए लालू यादव को उम्मीदवार बनाया गया। उनके साथ सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे नेता भी चुनाव लड़ रहे थे।
जनवरी 1974 में दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक राष्ट्रीय छात्र सम्मेलन हुआ, जिसमें बिहार से लालू यादव और सुशील मोदी भी पहुंचे। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि छात्र केवल शिक्षा व्यवस्था के मुद्दों पर नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और सरकार की नीतियों के खिलाफ भी आंदोलन करेंगे।
बिहार लौटकर उन्होंने 18 मार्च को विधानसभा का घेराव करने का ऐलान किया। इस दिन जब छात्र राजभवन की ओर बढ़े, तो पुलिस ने लाठीचार्ज और फिर गोलीबारी कर दी। इसमें 5-8 छात्रों की मौत हो गई। इस हिंसा ने आंदोलन को और भी भड़का दिया। जब आंदोलन चरम पर था, तब छात्रों ने देखा कि लालू यादव कहीं नजर नहीं आ रहे। इस बीच अफवाह फैली कि उन्हें गोली लग गई है। सुशील मोदी तक यह खबर पहुँची और उन्होंने इसे सच मान लिया।
बाद में नीतीश कुमार और नरेंद्र सिंह लालू यादव की तलाश में निकले। वे वेटनरी कॉलेज हॉस्टल पहुँचे, जहाँ लालू अपने भाई के कमरे में थे और हैरानी की बात ये थी कि वे मीट पका रहे थे। जब उनसे पूछा गया, तो लालू मुस्कराते हुए बोले, “हम त मीट बना रहे हैं, आ खा लो।”
दरअसल, अफवाह फैलाने वाला कोई और नहीं बल्कि खुद लालू यादव थे। उन्होंने प्रेसिडेंट के कमरे से फोन कर अपनी ही मौत की खबर फैलाई थी। इस घटना ने लालू के “राजनीतिक करिश्मे” को पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने ला दिया।…लेकिन राजनीतिक धुंरधर कहे जाने वाले लालू यादव क्या इस बार के विधानसभा चुनाव में गुल खिला पाएंगें इस पर हमारी रहेगी पैनी नजर.