Sonam Wangchuk, लद्दाख के जाने-माने समाजसेवी और पर्यावरण कार्यकर्ता हैं। उनकी पहचान एक शिक्षाविद और नवाचार करने वाले व्यक्ति की रही है। लेकिन हाल ही में लद्दाख की राजनीतिक मांगों को लेकर उनका आंदोलन तेज़ हुआ और इसी आंदोलन के बीच उनकी गिरफ्तारी की खबर सामने आई।गिरफ्तारी की सबसे बड़ी पृष्ठभूमि यह बताई जाती है कि Wangchuk लगातार लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार दिलाने की माँग कर रहे थे। उनका कहना था कि लद्दाख की संस्कृति, पर्यावरण और पहचान को बचाने के लिए यह कदम ज़रूरी है।
उनकी गिरफ्तारी से पहले लद्दाख में कई जगह धरने और प्रदर्शन हो रहे थे। Wangchuk खुद भूख हड़ताल पर बैठे थे और लोगों से शांतिपूर्ण आंदोलन की अपील कर रहे थे। लेकिन हालात बिगड़ते गए और माहौल तनावपूर्ण हो गया।पुलिस प्रशासन का दावा है कि आंदोलन के दौरान हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाएँ हुईं। इन्हीं आरोपों के चलते Wangchuk को गिरफ्तार किया गया। हालाँकि उनके समर्थक मानते हैं कि उन्होंने हमेशा शांतिपूर्ण तरीक़े से अपनी बात रखी।
गिरफ्तारी के बाद उनका परिवार और करीबी लोग लगातार यह कहते रहे कि Wangchuk ने कोई ग़लत काम नहीं किया। उनके अनुसार, यह कार्रवाई केवल राजनीतिक दबाव और आंदोलनों को रोकने के लिए की गई है।राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों ने भी गिरफ्तारी पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी। कुछ विपक्षी दलों ने इसे अलोकतांत्रिक बताया, तो वहीं कुछ लोगों ने कहा कि इस तरह की कार्यवाही लोकतंत्र की आत्मा के ख़िलाफ़ है।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या किसी शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने के लिए गिरफ्तारी जैसे कदम सही हैं? यह घटना लोकतांत्रिक मूल्यों और नागरिक अधिकारों की परीक्षा के रूप में देखी जा रही है।लंबे समय में यह गिरफ्तारी लद्दाख के आंदोलन को और मज़बूती भी दे सकती है। लोग Wangchuk को एक प्रतीक की तरह देख सकते हैं। वहीं सरकार के लिए यह चुनौती होगी कि वह लोगों की माँगों और शांति-व्यवस्था दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाए।